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नव चंडी एवं शतचंडी अनुष्ठान

नवचंडी एवं शतचंडी अनुष्ठान

नवचंडी एवं शतचंडी अनुष्ठान हिंदू धर्म में विशेष रूप से शक्तिशाली पूजा अनुष्ठान हैं, जो माँ चंडी या दुर्गा की उपासना के लिए किए जाते हैं। यह अनुष्ठान देवी चंडी के विभिन्न रूपों की स्तुति करते हुए उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। नवचंडी और शतचंडी दोनों पूजा विधियाँ विभिन्न प्रकार की परेशानियों और संकटों से मुक्ति पाने के लिए, समृद्धि, सुख-शांति, और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। इन पूजा विधियों में देवी चंडी की महिमा का गान किया जाता है और विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है।

नवचंडी अनुष्ठान (Navchandi Pujan):

नवचंडी पूजा का अर्थ है “नव” यानी 9 और “चंडी” का मतलब देवी चंडी से। इस पूजा में नवचंडी के मंत्रों का उच्चारण करके देवी चंडी की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से दुर्गा पूजा के दौरान और नवरात्रि के दिनों में अधिक की जाती है, लेकिन इसे किसी भी शुभ समय पर किया जा सकता है।

नवचंडी अनुष्ठान का महत्व:

  1. सभी संकटों से मुक्ति: नवचंडी पूजा करने से जीवन में आने वाले सभी तरह के संकट, दुख, और परेशानियाँ समाप्त होती हैं।
  2. शत्रुओं का नाश: यह पूजा शत्रुओं के खिलाफ प्रभावी मानी जाती है और व्यक्ति को शत्रु से मुक्ति दिलाने के लिए की जाती है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: देवी चंडी की पूजा से व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास मिलता है और मन की शांति प्राप्त होती है।
  4. धन और समृद्धि: नवचंडी पूजा करने से धन-धान्य की कमी दूर होती है और समृद्धि में वृद्धि होती है।
  5. नवविवाहितों के लिए: नवचंडी पूजा नए जीवन की शुरुआत करने वाले दंपत्तियों के लिए भी लाभकारी मानी जाती है।

नवचंडी पूजा की विधि:

  1. पूजा स्थल की शुद्धता: सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करें और वहां एक पवित्र आसन पर बैठकर पूजा आरंभ करें।
  2. गणेश पूजा: हर पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से करें, ताकि पूजा में कोई विघ्न न आए।
    • गणेश मंत्र:
      “ॐ गं गणपतये नमः”
  3. माँ चंडी का आवाहन: फिर माँ चंडी का आवाहन करें और उनके विभिन्न रूपों का ध्यान करते हुए पूजा प्रारंभ करें।
  4. नवचंडी मंत्र: नवचंडी पूजा में नवचंडी के 9 मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इन्हें मंत्रों के साथ पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से देवी चंडी का अभिषेक करें।
    • प्रमुख नवचंडी मंत्र:
      “ॐ चंडी महाक्रूरी महाक्रूरी महाशक्ते नमो नमः” (इस मंत्र का 108 बार जाप करें।)
  5. अर्चना: पूजा के बाद, देवी चंडी के समक्ष ताजे फूल, फल और दीप अर्पित करें।
  6. हवन: फिर देवी चंडी के हवन के लिए तिलघीचावलपंखुड़ी और अन्य हवन सामग्री का इस्तेमाल करें। हवन में चंडी मंत्र का जाप करें।
  7. प्रसाद वितरण: पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद का वितरण करें और पूजा को समाप्त करें।

शतचंडी अनुष्ठान (Shatchandi Pujan):

शतचंडी पूजा का अर्थ है “शत” यानी 100 और “चंडी” का मतलब देवी चंडी से। यह पूजा नवचंडी से बड़ी और अधिक विस्तृत पूजा है, जिसमें चंडी के 100 मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। शतचंडी पूजा अत्यधिक प्रभावी होती है और इसे विशेष रूप से संकटों से मुक्तिशक्ति की प्राप्तिदुर्गा आराधना और समृद्धि के लिए किया जाता है।

शतचंडी अनुष्ठान का महत्व:

  1. अत्यधिक शक्ति और कृपा: शतचंडी पूजा से देवी चंडी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो व्यक्ति के जीवन में शक्ति, सौभाग्य और सुख लाती है।
  2. कष्टों का निवारण: यह पूजा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टों से मुक्ति के लिए की जाती है।
  3. शत्रु नाश और विजय: शतचंडी पूजा शत्रुओं से रक्षा करती है और किसी भी प्रकार के विजय को सुनिश्चित करने में मदद करती है।
  4. धन-संपत्ति में वृद्धि: इस पूजा से धन और संपत्ति में वृद्धि होती है और आर्थिक स्थिति में सुधार आता है।
  5. जीवन में समृद्धि: शतचंडी पूजा जीवन में समृद्धि, ऐश्वर्य और सफलता की प्राप्ति का कारण बनती है।

शतचंडी पूजा की विधि:

  1. पूजा स्थान की तैयारी: सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध करें। आसन पर बैठकर ध्यान लगाएं और मन को एकाग्र करें।
  2. गणेश पूजा: सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें।
    • गणेश मंत्र: “ॐ गं गणपतये नमः”
  3. चंडी पूजा का प्रारंभ: फिर देवी चंडी का आवाहन करें और उनके शंकर, कालरात्रि और अन्य रूपों का ध्यान करें।
  4. शतचंडी मंत्रों का जाप: अब शतचंडी के 100 मंत्रों का उच्चारण करें। यह मंत्र विशेष रूप से देवी चंडी के अलग-अलग रूपों की स्तुति करते हैं।
      • सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
  5. हवन: हवन सामग्री का समर्पण करें और मंत्रों का जाप करें।
  6. प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें और पूजा समाप्त करें।

नवचंडी एवं शतचंडी अनुष्ठान हिंदू धर्म में विशेष रूप से शक्तिशाली पूजा अनुष्ठान हैं, जो माँ चंडी या दुर्गा की उपासना के लिए किए जाते हैं। यह अनुष्ठान देवी चंडी के विभिन्न रूपों की स्तुति करते हुए उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। नवचंडी और शतचंडी दोनों पूजा विधियाँ विभिन्न प्रकार की परेशानियों और संकटों से मुक्ति पाने के लिए, समृद्धि, सुख-शांति, और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। इन पूजा विधियों में देवी चंडी की महिमा का गान किया जाता है और विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है।

नवचंडी अनुष्ठान (Navchandi Pujan):

नवचंडी पूजा का अर्थ है “नव” यानी 9 और “चंडी” का मतलब देवी चंडी से। इस पूजा में नवचंडी के मंत्रों का उच्चारण करके देवी चंडी की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से दुर्गा पूजा के दौरान और नवरात्रि के दिनों में अधिक की जाती है, लेकिन इसे किसी भी शुभ समय पर किया जा सकता है।

नवचंडी अनुष्ठान का महत्व:

  1. सभी संकटों से मुक्ति: नवचंडी पूजा करने से जीवन में आने वाले सभी तरह के संकट, दुख, और परेशानियाँ समाप्त होती हैं।
  2. शत्रुओं का नाश: यह पूजा शत्रुओं के खिलाफ प्रभावी मानी जाती है और व्यक्ति को शत्रु से मुक्ति दिलाने के लिए की जाती है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: देवी चंडी की पूजा से व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास मिलता है और मन की शांति प्राप्त होती है।
  4. धन और समृद्धि: नवचंडी पूजा करने से धन-धान्य की कमी दूर होती है और समृद्धि में वृद्धि होती है।
  5. नवविवाहितों के लिए: नवचंडी पूजा नए जीवन की शुरुआत करने वाले दंपत्तियों के लिए भी लाभकारी मानी जाती है।

नवचंडी पूजा की विधि:

  1. पूजा स्थल की शुद्धता: सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करें और वहां एक पवित्र आसन पर बैठकर पूजा आरंभ करें।
  2. गणेश पूजा: हर पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से करें, ताकि पूजा में कोई विघ्न न आए।
    • गणेश मंत्र:
      “ॐ गं गणपतये नमः”
  3. माँ चंडी का आवाहन: फिर माँ चंडी का आवाहन करें और उनके विभिन्न रूपों का ध्यान करते हुए पूजा प्रारंभ करें।
  4. नवचंडी मंत्र: नवचंडी पूजा में नवचंडी के 9 मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इन्हें मंत्रों के साथ पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से देवी चंडी का अभिषेक करें।
    • प्रमुख नवचंडी मंत्र:
      “ॐ चंडी महाक्रूरी महाक्रूरी महाशक्ते नमो नमः” (इस मंत्र का 108 बार जाप करें।)
  5. अर्चना: पूजा के बाद, देवी चंडी के समक्ष ताजे फूल, फल और दीप अर्पित करें।
  6. हवन: फिर देवी चंडी के हवन के लिए तिलघीचावलपंखुड़ी और अन्य हवन सामग्री का इस्तेमाल करें। हवन में चंडी मंत्र का जाप करें।
  7. प्रसाद वितरण: पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद का वितरण करें और पूजा को समाप्त करें।

शतचंडी अनुष्ठान (Shatchandi Pujan):

शतचंडी पूजा का अर्थ है “शत” यानी 100 और “चंडी” का मतलब देवी चंडी से। यह पूजा नवचंडी से बड़ी और अधिक विस्तृत पूजा है, जिसमें चंडी के 100 मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। शतचंडी पूजा अत्यधिक प्रभावी होती है और इसे विशेष रूप से संकटों से मुक्तिशक्ति की प्राप्तिदुर्गा आराधना और समृद्धि के लिए किया जाता है।

शतचंडी अनुष्ठान का महत्व:

  1. अत्यधिक शक्ति और कृपा: शतचंडी पूजा से देवी चंडी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो व्यक्ति के जीवन में शक्ति, सौभाग्य और सुख लाती है।
  2. कष्टों का निवारण: यह पूजा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टों से मुक्ति के लिए की जाती है।
  3. शत्रु नाश और विजय: शतचंडी पूजा शत्रुओं से रक्षा करती है और किसी भी प्रकार के विजय को सुनिश्चित करने में मदद करती है।
  4. धन-संपत्ति में वृद्धि: इस पूजा से धन और संपत्ति में वृद्धि होती है और आर्थिक स्थिति में सुधार आता है।
  5. जीवन में समृद्धि: शतचंडी पूजा जीवन में समृद्धि, ऐश्वर्य और सफलता की प्राप्ति का कारण बनती है।

शतचंडी पूजा की विधि:

  1. पूजा स्थान की तैयारी: सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध करें। आसन पर बैठकर ध्यान लगाएं और मन को एकाग्र करें।
  2. गणेश पूजा: सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें।
    • गणेश मंत्र: “ॐ गं गणपतये नमः”
  3. चंडी पूजा का प्रारंभ: फिर देवी चंडी का आवाहन करें और उनके शंकर, कालरात्रि और अन्य रूपों का ध्यान करें।
  4. शतचंडी मंत्रों का जाप: अब शतचंडी के 100 मंत्रों का उच्चारण करें। यह मंत्र विशेष रूप से देवी चंडी के अलग-अलग रूपों की स्तुति करते हैं।
      • सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
  5. हवन: हवन सामग्री का समर्पण करें और मंत्रों का जाप करें।
  6. प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें और पूजा समाप्त करें।

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